Monday, March 22, 2010
सिमटती भारतीय संस्कृति
बिभिन्न बिविधताओ के समिश्रण के बाद भी हमारी सभ्यता विश्व की अनुपम सभ्यता है. जिसका इतिहास ५००० साल पुराना है, ३२५ भाषाओ के होने पर भी दिल से सिर्फ एक ही आवाज निकलती है "हिन्दुस्तानी". इतनी पुरानी सभ्यता होने के बावजूद भी पूरे विश्व में हमारी सभ्यता की एक अलग पहचान है जिसे सारी दुनिया अनुसरण करती है. पाषण युग से लेकर आज तक चित्रकारी, मधुवनी पेंटिंग, संगीत और नृत्य- नौटंकी की बदौलत हमारी संस्कृति आज भी धनी है. पहनावा जो इस संस्कृति को पूरे विश्व में एक अलग पहचान दिलाता है जिसका पूरा विश्व कायल है, साड़ी जिसे पहनने के बाद किसी भी नारी की सुन्दरता में चार चाँद लग जाते है वो हमारी संस्कृति की ही देन है.
आज का युवा वर्ग भारतीय संस्कृति को छोड़ के पश्चमी सभ्यता को अपनाने में अपने को गौरवान्वित महसूस करता है, भारतीय नृत्य का तो आज नामो निशान मिटने पे है जहा देखो वहा पे 'डिस्को' और ना जाने कौन कौन से नृत्य का बोल बाला है,कुछ अलग दिखने की चाह में खुद को किसी भी हद तक गिराने को तैयार है.
हिंदी जो हमारी मातृभाषा है उसमे बात करना उन्हें गवारा नहीं है, वो तो अंग्रेजी को अपनी भाषा बना बैठे हैं,जो युवा अंग्रेजी नहीं बोल पा रहे है उनके सह्पाठी उनकी खिल्ली उड़ाते है, आज जो लोग अपने को संभ्रांत कहते है उस समाज में अंग्रेजी बोलना एक रीती है. आज किसी पार्टी में जाओ तो वहा दो चीजो का ही बोल-बाला होता है दारू और सिगरेट, जहां एक हाथ की शोभा दारू तो दूसरे हाथ की शोभा सिगरेट बढ़ा रही होती है.
युवा वर्ग को भारतीय संस्कृति बोझ लगने लगी है, ना उनके लिए कोई धर्म मायने रखता है ना कोई सभ्यता उनका धर्म तो बस एक ही रह गया है वो है, 'पब' और 'डिस्को' वहा पे वो जाके अंग्रेजी संगीत पर झूमना, मदिरा सेवन करना और फिर अश्लीलता की सारी हदे पार कर जाना जिसकी इजाजत हमारी संस्कृति कभी नहीं देती, उन्हें लगता है सारी दुनिया यही तक सिमटी हुई है, पर जब वो नींद से जागते है तो उन्हें एहसास होता है कि ये कहा आ गए हम....फिर लौटने के सारे रास्ते बंद हो चुके होते है, वो उस दलदल में फस चुके होते है जिससे निकलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होता है.
'कॉल सेंटर और बीपीओ के आने के बाद तो युवा बर्ग में पैसे कमाने की तीब्र भावना जागृत हो चुकी है और इसका पूरा फायदा विदेशी कंपनिया उठा रही है, पैसे का लालच दे कर मासूम जिदंगी में मीठा जहर घोल रही है, ये जहर कब असर करना शुरु करता है शायद उन्हें पता भी नहीं चलता जब तक पता चलता है लुटिया डूब चुकी होती है.
हमारी संस्कृति की मिशाल इसी बात से साफ झलकती है कि यहाँ पर तलाक का प्रतिशत १.१ के करीब है जो अमेरिका में ५० प्रतिशत से भी ज्यादा है ,जिस नमस्ते ने सारी दुनिया को अभिवादन करना सिखाया आज वो धूमिल हो चुकी है लोग हाय - हैलो बोलने में अपने आप को गौरवान्वित महसूस करते है , जहां हमारी संस्कृति नें लोगो को आदर करना सिखाया और एक दूसरे की सहायता करना भी। आज ये सारी बाते किताबो में ही कैद होकर रह गयी है।.
किसी देश के विकास की डोर उसके युवाओ के हाथ में होती है, यदि युवा पीढ़ी सही दिशा में काम कर रही है तो देश दिन दुनी और रात चौगिनी तरक्की कर सकता है पर आज के माहौल को देखकर तो बस एक ही बात दिल से निकलती है "भगवान भला करे इस देश का"...........................
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बहुत सही मुददा उठाया है आलोक भाई लिखते रहिये अभी बहुत सारे तथ्य भारतीय सस्कृति पर बाकी है। लिखते रहिये जनाब
ReplyDeleteGood thoughts..
ReplyDelete"भगवान भला करे इस देश का"
ReplyDeleteGood